आदर्श दाम्पत्य जीवन का सार




''पति-पत्नी के रिश्ते को मन, वचन, कर्म, धर्म से निभाना होता है। आज के भौतिकवादी युग में इस रिश्ते में व्यापक परिवर्तन आ रहा है। अब इसे हम पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव कहें, टीव्ही कल्चर  कहें या अपनी कमजोरी, जो हमारे इस पावन रिश्ते में जहर घोल रही है। उन्नति के नए रास्तों से भी दाम्पत्य जीवन में कुछ नई चुनौतियां उभरने लगी है। फिर भी यह मानना होगा की यदि कितना भी परिवर्तन क्यों न आ जाए।''


भारतीय संसकृति में जिल सोलह संस्कारों का महत्व है उनमें विवाह सर्वोपरी है। विवाह जीवनको सम्पूर्ण बनाता है। ''विवाह'' परिवार के मंदिर का मुख्य द्वार है। परिवार से तात्पर्य निजी संबंधों  को सुनियोजित व्यवस्था और जीवन-यापन के लिए किए गए समन्वित प्रयासों से हैं। दायित्व जिसके मूल में हैं। जहां पति-पत्नी दोनों प्रतिभावन औद दूरदर्शी होते हैं, वहां परिवार समुंद्र की हिलोंरो की तरह खुशियों से भरा रहता है। गृहस्थ जीवन में चुनौतियों, समस्याओं, संकटों से सामना प्रत्येक दम्पति को करना ही पडता है। पुरुषार्थ तथा विवेकपूर्ण कार्यों से इनका निराकरण करना आसान होता है। धन-दौलत तो कोई भी कमा सकता है, किंतु दाम्पत्य जीवन में शांति-समृध्दि कीर्ति का खजाना केवल भारतीय संस्कृति में ही पाया जा सकता है। हमारी संस्कृति में पति-पत्नी का रिश्ता ना केवल अटूट बल्कि जन्म-जन्मांतर का बंधना माना गया है। ये परिवार संस्था,  घर का मुख्य आधारस्तंभ होते हैं।
पति-पत्नी के रिश्ते को मन, वचन, कर्म, धर्म से निभाना होता है। आज के भौतिकवादी युग में इस रिश्ते में व्यापक परिवर्तन आ रहा है। अब इसे हम पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव कहें, टीव्ही कल्चर  कहें या अपनी कमजोरी, जो हमारे इस पावन रिश्ते में जहर घोल रही है। उन्नति के नए रास्तों से भी दाम्पत्य जीवन में कुछ नई चुनौतियां उभरने लगी है। फिर भी यह मानना होगा की यदि कितना भी परिवर्तन क्यों न आ जाए, कितनी भी चुनौतियां सामने हो किंतु जबतक जीवन की आधारभूत  मान्याताओं को महत्व देते रहेंगे उसमें कोई दखल नहीं दे सकता। दाम्पत्य जीवन जीने की आधारशीला है प्रेम, त्याग, समर्पण, सहयोग, सदभावना, संस्कार, सौम्यता, शिष्टाचार, समदृष्टिकोण, क्षमाशीलता आदि सदगुण। ये गुण एक दिन की उपलब्धि नहीं, बल्कि सतत प्रयासों की प्रक्रिया है।
दाम्पत्य जीवन तथा परिवार में प्रेम की पूंजी बढाने के लिए आलोचना से बचें, प्रशंसा करें, गलती के लिए क्षमा मांग लें, गलतियों पर परिजनों को क्षमा कर दें, चेहरा सदैव आकर्षक, लुभावना ओर मुस्कराता हुए रखें, परिजनों का विश्वास वादा निभाकर सदा कायम रखें, समभाव में परिवार  सुखी रहता है, समदृष्टि रखनेपर अशांति नहीं होती, अतित्यशीलता से स्नेह- सौहार्द्र बढता है। फिर भी चुनौतियों का सामना करना पड जाए तो सर्वप्रथम अहंकार की भावना को त्याग दें। उसकी जगह समर्पण को दें। शिक्षा का अभिमान और अपने-अपने कॅरियर के प्रति बढते रूझान की समस्या केवल समझदारी और सामंजस्य से पति-पत्नी हल कर सकते हैं। सास-श्वसूर को माता-पिता का दर्जा से आते हैं, अपेक्षाएं, कार्यपध्दति अलग-अलग होना स्वाभाविक है। अब पत्नी पढीलिखी या उम्र में कुछ बडी हो सकती है, बदलते समाज को समझना जरूरी है। पति में स्त्री के गुण आनेसे महात्मा बन जाता है। पत्नी में पुरुष के गुण आने से कुलटा बन सकती है। आवश्यकताओं की पूर्ति हो सकती है, इच्छाओं को नहीं। याद रहे, जिंदगी में सारी चीजें लौटाई जा सकती है, गुजरा हुवा वक्त लौटाने की क्षमता स्वयं वक्त में नहीं होती।
वर्तमान युग में पति को परमेश्वर समझना पिछडापन की निशानी कुछ समझते हैं। फिर भी दाम्पत्य जीवन चल सकता है, बशर्ते पत्नी को सही अर्थों में अपनी सहभागिनी समझें और पति को जीवनसाथी। आपस में सहकार, आदर-प्रेम की भावना हो। ''वो'' का जीवन में प्रश्न उपस्थित न हों। किसी भी तरहकी शंका-कुशंका, गलत धारणा की चिंगारी आदर्श दाम्पत्य जीवन को भी स्वाहा कर सकती है। आचार, विचार व्यवहार में पारदर्शी होना जरूरी है। एक-दूजे में अच्छाईयां व कमियां हो सकती है। इस संसार में कोई भी दो व्यक्तित्व एक जैसे नहीं होते। भावनाओं का तथा विचारों का आदान-प्रदान करना, एक-दूजे के करने विचारों का सम्मान करना, अपने जीवनसाथी की जगह अपने को रखकर सोचना, विचार प्रकट करने की स्वतंत्रा देना तथा किसी घटना के बाद उसका अवलोकन एक बाही व्यक्ति की करने से अपनी-अपनी गल्तियां समझ सकेंगे। निराकरण भी कर सकेंगे, आदर्श दाम्पत्य जीवन व्यतीत कर सकेंगे।
पति-पत्नी से घर बनता है। घर गृहस्थी से सजता है। घर दोनों का होता है। उसे दोनों को मिलकर संवारना होता है। एक भटकता है तो दूसरे को संभालना पडता है। मकान बाने में समय नहीं लगता। घर बनाने में समय लगता है। दीवारों से घर नहीं बनते बल्कि उसमें रहनेवालों के सुसंस्कारित विचार ही घर की आधारशीला होते हैं। घर के लिए पती-पत्नी का वास्तविक मेल लगता है। फूल भौरोंको निमंत्रण नहीं देता। दीपक पतिंगों को बुलाता नहीं। सागर नदियों को पुकारता नहीं। स्वयं इनका इतना गौरव है कि वे चलकर आते हैं। घर का आकर्षण ऐसा होना चाहिए जाहं पहुंचने को मन आतुर हो, उत्सुक हो। घर पहुंचने पर स्वर्ग मिलने की अनुमति हो। आदर्श दाम्पत्य जीवन का सार यहीं है।  

1 Comment(s) on “आदर्श दाम्पत्य जीवन का सार“

Comment by : Madhurendra 08/09/2013 10:31 AM

Bahut Sunder..

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