अहंकारी : कोई धर्म नहीं...!

अहंकारी : कोई धर्म नहीं...!
जिस प्रकार फल फूलों से लदा पेड झुका रहता है वैसे ही गुणों के भार से विनम्र पुरुष झुके रहते हैं, परन्तु अहंकार इंसान में अकड होती है वह उसकी बहुत बडी कमजोरी होती है। इसी अहंकार के पोषण में इंसान सब कुछ समर्पित करने को तैयार जाता है। सत्ता, संपदा और शक्ति को पाकर भले हम अहंकार करने लगे पर इसका स्थायित्व नहीं है, अहंकार से हम फूल तो सकते हैं पर फैल नहीं सकते। भारतीय संस्कृति लघुता से प्रभुता पाने की संस्कृति है, आज तक जो भी राघव बने हैं वह राघव बनने से पहले लाघव जरूर बने हैं। इसी लघुता, मुदृता पाने का नाम मार्दव धर्म है। नदी की तेज बाढ के साथ जब समुद्र में झाड झंकार बडे-बडे वृक्ष पहुँचे तो समुद्र ने नदी से पूछा कि तुम, झाड झंकारों को तो उखाड कर लाती हो, लेकिन कभी कमजोर और कोमल बेतों को लेकर नहीं आती? इस बात को सुनकर नदी ने जवाब दिया कि मेरे तेज प्रवाह के सामने जो झाड अकड कर खडे रहते हैं मैं उन्हें उखाड कर ले आती हूं, लेकिन जो कमजोर और कोमल बेंत विनम्रता से झुक जाते हैं उन्हें मैं उखाड नहीं पाती। सचमुच अडना और अकडना ही जड से उखडने का कारण है। संसार में धन, पद, यश, वैभव और बल को पाकर अहंकारी व्यक्ति इस तरह का व्यवहार करता है जिसका धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं है। दौलत को पाकर आदमी वैसे ही अंधा हो जाता है। वह दौलत के मद में किसी को कुछ नहीं समझता है।

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