पत्र सम्पादक के नाम राजनीति चुनाव में जातीय हावी तो समाज में खांप भारी पडी

पत्र सम्पादक के नाम
राजनीति चुनाव में जातीय हावी
तो स
माज में खांप भारी पडी

सम्पादक महोदय,
अभी हाल ही में सम्पन्न अखिल भारतीय सेवा सदन के चुनावों के नतीजों का विश्लेषण किया जाए तो मोटे तौर पर मतदाताओं द्वारा किये गये मतदान का आधार इस प्रकार नजर आता है-
1.    दोनों गुटों के कट्टर समर्थकों ने अपने पूरे पेनल में भी एक-दो उम्मीदवारों को छोडकर मतदान किया है। यह इससे स्पष्ट होता है कि बाकी उम्मीदवारों से दो उम्मीदवारों को काफी कम मत प्राप्त हुए हैं।
2.    नतीजों को देखने पर मालूम पडता है कि अधिकतर मतदाताओं ने क्षेत्रियता के आधार पर मतदान किया है। जिस-जिस क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या ज्यादा है, उस क्षेत्र के अधिकतर प्रत्याशी विजयी हुए हैं, चाहे वो किसी भी गुट के रहे हों। जैसे कि जोधपुर, भीलवाा, मेडता, अजमेर-पुष्कर आदि। इसका मुख्य कारण मतदाताओं के लिए क्षेत्र के बाहर के प्रत्याशियों के बारे में ज्यादा जानकारी न होना भी रहा है।
3.    जिस प्रकार देश के राजनीतिक चुनावों में जातियता हावी रहती है, उसी की तर्ज पर इस चुनाव में हमारा समाज भी इससे अछूत नहीं रहा है। मसलन यहां भी खांपवार मतदान देखने में आया है। हमारे समाज की सबसे बडी राठी खांप के बाद दूसरे नम्बर पर मूंदडा खाप है। इस चुनाव के नतीजों के अनुसार जितने भी मूंदडा खांप के उम्मीदवार थे, चाहे वे किसी भी गुट के रहे हों, सभी विजयी हुए हैं। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि मूंदडा खाप ने अपने भाईपे के आधार पर मतदान किया है।
4.    अध्यक्ष पद के लिए निसन्देह परिवर्तन के लिए मतदान एक कारण रहा है फिर भी कुछ हद तक यहां भी क्षेत्रीय मतों ने भी अपनी भूमिका निभाई है। अध्यक्ष पद पर विजयी प्रत्याशी श्री श्याम सुन्दर बिडला जोधपुर व मेडता से ताल्लुक रखते हैं और जहां के मतदाता सर्वाधिक है। अतः उन्हें इस क्षेत्र से अच्छी बढत प्राप्त हुई है।
मैंने अपने विश्लेषण व तथ्यों के आधार पर अपने विचार प्रकट किये हैं और मैं समझता हूं कि मेरे द्वारा प्रस्तुत तर्कों से अधिकांश लोग सहमत होंगे।
शंशाक माहेश्वरी,
सुंदरविहार जोधपुर (राज.)

पत्र सम्पादक के नाम
माहेश्वरी समाज और चुनाव


सादर जय महेश,
मैं 83 वर्ष का हूँ। समाज के सभी स्वरुप मैंने देखे हैं। उस समय आवागमन के साधन कम होने के बावजूद भी सामाजिक सम्मेलन होते थे। समाज हित में निर्णय भी होते थे। जरूरत होने पर सेवा भावी व प्रबुध्द व्यक्तियों को काम सौंप दिया जाता था। अभी-अभी जयपुर में चुनाव हुए थे एवं अखिल भारतवर्षीय माहेश्वरी सेवा सदन पुष्कर के चुनाव भी दिनांक 2 सितम्बर 2012 को हुए हैं। इसी प्रकार और भी सामाजिक चुनाव होते रहते हैं जैसे महासभा प्रदेश सभाएं और जिला सभाएं आदि। इन सभी चुनावों में दोनों पक्षों की मोटी रकम खर्च होती है। धन व समय का इतना अपव्यय, हमारे समाज के लिए उचित नहीं है।
हम लक्षमी-पुत्र कहलाते है, बहुत मेहनत के बाद धन कमाया जाता है। हम सभी समाज बंधु आपस में रिश्तेदारी प्रेम-स्नेह संबंधों की वजह से एक-दूसरे से एक रस हैं, जो जीते वे भी हमारे हैं और हारे वो भी हमारे हैं। चुनावों से भाई-भाई में, रिश्ते-नातेदारों में और बंधु-बांधवो में दूरियां व वैमनस्यता बत्रढने का अक्षभ्य अपराध हो जाता है। इन दरारों को पाटने में कितना वक्त लगता है पता नहीं। हम एक रस रहकर, एकजुट होकर ही आने वाली चुनौतियों का सामना कर सकते हैं व समाज को समग्र ऊँचाइयां प्रदान करने में भागीदार हो सकते हैं। जो समय की महत्ती आवश्यकता है।
समाज बंधुओं राजनीति में शासन की भावना रहती है और समाजनीति में सेवा करने व सर्मपण की भावना रहती है। आइये, सब मिल बैठकर विचार करें, चिन्तन करे कि यदि समाज में चुनाव की स्थिति आवे तो तटस्थ एवं प्रबुध्द व्यक्तियों द्वारा प्रयत्न कर सर्वसम्मति से पदाधिकारियों का चयन कर ले, जिससे मोटे खर्च और राग-द्वेष से बचा जा सकेगा।
शेष शुभ- सादर जय महेश !
-रामजस बाल्दी, अजमेर (राज.)


  इस ख़बर पर अपनी राय दें:
आपकी राय:
नाम:
ई-मेल:
 
   =   
 
ई-मेल रजिस्टर करें

अपनी बात
मतभेद के बीच मनभेद न आने दें...।

मतभेद के बीच मनभेद न आने दें...।