महासभा का सभापति कैसा हो...?

महासभा का सभापति कैसा हो...?



देश के विकास व उन्नति में हम तभी सहभागी हो सकते हैं जब महासभा का सभापति जो हर क्षेत्र में निपूर्ण हो, जिसकी सोच ऊंची हो और अपनी सुझबूझ से सभी कार्यों को अंजाम दे सके। मात्र भाषण बाजी कर अपनी कहानी गढना और लोगों को आकर्षित करने से कुछ होता नहीं। सभापति ऐसा हो जो धन की जुगाड भी कर सके। समाज के ऐसे कार्य जो धन से सम्पन्न होते हों, जैसे भवन, छात्रावास, स्वास्थ्य सेवा, कमजोर तबकों की सहायता, विधवा सहायता, उद्योग ॠण आदि में अहम भूमिका निभा सके और जिसका सभी से मधुर सम्बन्ध हो और उनसे समाज को मदद दिलवा सके। ऐसे योग्य व्यक्ति को महासभा की बागडोर सौंपना चाहिए, क्योंकि कोई भी कार्य बिना धन के पूरे नहीं हो सकते। समाज में राजनीति करने से समाज नहीं चलता। भाषणवाला व्यक्ति अपनी बात बडी चतुराई से सामने रखकर अपना प्रभाव उन पर डालता है। परन्तु यह बात केवल सभा तक ही सीमित होती है। इससे समाज का कोई हित नहीं होता। कहावत है- ''भाषण से राशन नहीं मिलता'' भाषण उस व्यक्ति का जिसके प्रभाव से समाज का कार्य हो जाए। वह व्यक्ति केवल सेवा योग्य है परन्तु धन की महत्वपूर्ण कडी वह है जिसके बिना ना भवन बनेगा और किसी की सहायता। इसके लिए ऐसा व्यक्ति जो हमेशा समाज की अग्र पंक्ति में खडा हों, जिनका समाज की जनता ने सम्मान किया हो। ऐसे व्यक्ति को ही महासभा का कर्णधार बनाना चाहिए।
पिछले चुनाव पर नजर डालें तो मालूम होता है कि वह चुनाव धन बल पर ही लडा गया था जिसमें करोडों रुपए इस कार्य में खर्च हुए परन्तु उस चुनाव में जो मोहर लगी वह वही थी जो सभापति दो बार चुनाव में छह वर्ष तक महासभा के पद पर बने रहे।
अब चुनाव का पैतरा बदल चुका है धन तो अपनी जगह खर्च होगा ही, परन्तु समाज में चल रही राजनीति चाल वाले वे व्यक्ति इस चुनाव मैदान में प्रत्याशी हैं जो पिछले चुनाव में एक-दूसरे के सपोर्टर थे। अब वे ही अपना खेमा बनाकर चुनाव मैदान में उतर गए हैं जिसमें कोई धनी वर्ग का, तो कोई भाषणवाला, तो कोई बुध्दिजीवी, तो कोई राजनीति वक्ता वाला, व्यक्ति इस चुनाव की अग्नि परीक्षा में कूद पडे हैं।
इस चुनाव में पैसा तो स्वाहा होगा ही, परन्तु भाषणों के बाण, राजनीति के दांवपेज, बुध्दजीवियों के अहम मुद्दे, जो इन गुटों द्वारा चुनाव में अपना जौहर दिखाएंगे।
ऐसे प्रत्याशी कोई बंगाल से, राजस्थान से तो कोई आंध्रा से, गुजरात से, महाराष्ट्र से इस चुनावी जंग में शामिल होंगे। पिछले चुनाव में जो प्रत्याशी एक-दूसरे के सपोर्टर थे वे ही अब विरोधी बनकर सामने आ खडे हुए हैं। गौर करें कि इस चुनाव में तालमेल वालों में अब विरोधाभास की भावना पनप रही है जिसका अंदर ही अंदर लावा फुटकर सामने आएगा। जिससे समाज को क्या दिशा मिलेगी? समाज विकास करेगा? या समाज में ऐसा ही चलता रहेगा?
शिखर से शून्य ... फिर चुनाव मैदान में...!
    इस महासभा के चुनाव में ऐसे व्यक्ति भी चुनाव में अपनी ताकत दिखाने के लिए उम्मीदवार होंगे जो महासभा के 673 मतदाताओं से अपना भाग्य अजमाएंगे। महासभा के इस चुनाव में वह पराजित व्यक्ति कितना दम भर पाएगा? जो जीत का सपना लेकर चल रहा है। उसकी सोच है कि मेरे पास ऐसी शक्ति का हाथ है जिससे मैं यह अहम चुनाव जीत लूंगा, परन्तु उनकी यह सोच कितनी कारगर सिध्द होगी जिसका फैसला महासभा के 673 मतदाता करेंगे कि उनके पक्ष में कितने मत डलते हैं। इन्हें कितने मतदाता पसंद करते हैं या उस पक्ष के। जो व्यक्ति देश में भवनों की बडी संस्था के हजारों सदस्यों से चुनाव हार गया हो, जिसने उस संस्था में कई वर्षों तक कार्य करते अपनी प्रतिष्ठा कायम की हो और वह उसी संस्था से पुनः चुनाव में पराजित हो जाए जिसने उस संस्था में अपना गौरव हासिल किया हो और पराजित होने के उपरांत पद की लालसा को लेकर अब महासभा के चुनाव में प्रत्याशी बनकर आ खडा हो जाए। ऐसे प्रत्याशी से आप क्या उम्मीद लगाते हैं? वह पराजित व्यक्ति अब अपने भाग्य अजमाने के लिए इस चुनाव मैदान में कुद पडा है।

  इस ख़बर पर अपनी राय दें:
आपकी राय:
नाम:
ई-मेल:
 
   =   
 
ई-मेल रजिस्टर करें

अपनी बात
मतभेद के बीच मनभेद न आने दें...।

मतभेद के बीच मनभेद न आने दें...।