राजनीति दलों की तरह... महासभा चुनाव...!

राजनीति दलों की तरह...
महासभा चुनाव...!



देश में जिस प्रकार राजनीति पार्टियों के नेता दल-बदल करते हैं और चुनाव के दौरान नेता अपनी पार्टी से बगावत कर दूसरे विरोधी खेमे में शामिल हो जाते हैं और चुनाव लडते हैं, क्योंकि उनको चुनाव में खडा होने की टिकट ये पार्टी वाले दिलवाते हैं या उसको किसी पद की कुर्सी पर बिठाने का आश्वासन देकर अपनी पार्टी में शामिल कर लेते हैं। यह तो रही देश की राजनीति की पार्टियों की बातें जो हमेशा देखने को मिल रही है।
ठीक उसी प्रकार अब इसका अनुसरण माहेश्वरी समाज की महासभा में देखा जाने लगा है। पहले समाज में राजनीति बहुत कम होती थी और चुनाव एक जाजम पर बैठकर हो जाते थे परन्तु अब समाज का वृहत रूप होने से चुनाव का पैतरा बदल चुका है और समाज में खुलेआम एक-दूसरे के विरोधी बनकर चुनाव में खडे होते हैं। इसके अलावा इसके और कई कारण भी हो सकते हैं।
उदाहरण के तौर पर भीलवाडा का अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन जिसने इतिहास के पन्नों पर अमिट छाप बनाई। विश्वभर में माहेश्वरी समाज का नाम रोशन हुआ और हर व्यक्ति के मुंह से यह बात निकल रही थी कि ऐसा विशाल अधिवेशन कभी देखा नहीं और न देखने को मिलेगा, इस बैनर तले  माहेश्वरी समाज के बंधुओं व वरिष्ठजनों के साथ अप्रवासी भारतीय (एनआरआई) माहेश्वरी बंधुओं को इस मंच से नेतृत्व करने का मौका मिला। इस मौके पर देश-विदेश के बडे घरानों के उद्योगपति, बिडला, बांगड सहित भारत के सर्वोच्च न्यायाधीश श्री रमेशचंदजी लाहोटी, राजस्थान मुख्यमंत्री, राज्यपाल सहित कई उच्च हस्तियों ने इस अधिवेशन में शिरकत की, जिसकी प्रशंसा माहेश्वरी समाज ही नहीं अन्य  समाजों में अग्रवाल, जैन, वैश्य आदि भी प्रशंसा करते नहीं थके। इस अधिवेशन की सफलता का ताज महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री रामपाल सोनी को पहनाया गया। परन्तु यह बात कई लोगों को नागवार हुई, क्योंकि या तो उन्हें मंच नहीं मिला या उनकी ख्वाहिश पुरी नहीं हो सकी। ऐसे लोग श्री सोनी के विरोधी बनकर खडे हो गए और इस तरह के अधिवेशन करने की ठान ली। ऐसे कई वरिष्ठजन इस अधिवेशन में शामिल हो गए और उदयपुर अधिवेशन की योजना को लेकर सोनी की सफलता को कूचना चाहा अधिवेशन में कई आरोप-प्रत्यारोप लगाए गए। यह बवंडर पूरे देश में फैल गया और आरोप-प्रत्यारोप पर विवाद गहराता गया। आखिर अंत में इस आरोप-प्रत्यारोप पर विराम देकर इस त्रुटि के लिए शिकवा-शिकायत दूर की। आखिर में सही निर्णय श्री सोनी के पक्ष में गया। उसके बाद श्री सोनी का वापस वर्चस्व बना जो पुनः अहमदाबाद में महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित हुए।
अहमदाबाद चुनाव के दौरान जो लोग विपक्ष पैनल में जुडे थे उस पैनल के साथ वाला एक नहीं बचा। जो उनके विरोधी थे इस चुनाव में उनके दावेदार बन गए हैं। जिसने 9 वर्ष तक सेवा सदन की सीट नहीं छोडने को लेकर पुनः चुनाव लडा और वे हार गए अब महामंत्री के दावेदार बन गए हैं। जिसने अहमदाबाद के महासभा चुनाव में सोनी के कंधे से कंधा मिलाकर काम किया था वह व्यक्ति अब उनसे कोसो दूर हो गया है आखिर क्यों? ऐसे ही हाल सेवा सदन के कोषाध्यक्ष का है। उन्होंने भी वही किया जो उनके खेमे में जा मिले। जो लोग रामपालजी की तारीफ करते नहीं थकते थे। ऐसा ही हैदराबाद वालों का भी वही हाल है जो पिछले अहमदाबाद चुनाव में ऐन वक्त पाशा पलटा और विपक्ष के साथ जुड गए और अन्दर ही अन्दर सोनी के चुनाव में सेंध लगाते रहे और आखिर वे ही हार गए और सोनी की जीत हुई। गौर करें नांदेड के महाराष्ट्र प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष जो रामपालजी के निकटतम साथी रहे वे चुनाव हारने के बावजूद, उन्हें बोर्ड के अध्यक्ष का कार्यभार सौंपा और अब विरोधी पैनल में आ खडे हुए हैं।
इस तरह समाज में राजनीति चालें जो महासभा में इस कदर चल रही हैं जिससे आने वाला वक्त क्या होगा? क्या काम होगा? महासभा का! समाज को इससे क्या मिलेगा? यह सोचनीय प्रश्न है!
ऐसा लगता है यह महासभा का चुनाव नहीं, यह तो पद कुर्सी पाने की लालायत  नजर आ रही है संभावना है इस चुनाव में लाखों, करोडों की राशि तो स्वाहा होगी ही। यहां तक कि मतदाताओं को ए.सी. टिकट, प्लेन टिकट, थ्री स्टार होटल व्यवस्था, घूमने-फिरने, पिकनिक मनाने, डेम देखने और न जाने क्या-क्या व्यवस्था मतदाताओं को लुभा सकती है?
इसके लिए धन कहां से आएगा? कौन खर्च करेगा? इसका क्या हिसाब होगा? यह वे ही जानते हैं जो इससे जुडे हैं। अभी तो वे स्वयं अपने साथियों के साथ हवाई दौड लगा रहे हैं यह धन कहां से आ रहा है?
अब दूसरी पार्टी के हाल जाने- बताया जाता उनके ऊपर एक नहीं दो-दो वरदहस्त का हाथ है। जिस पार्टी से वे खडे होकर चुनाव लडे थे और जीत हासिल की, वे अब सभापति के लिए उम्मीदवार है।
पहले चुन्नीलालजी के साथ महामंत्री पद बखूबी संभाला, फिर पिछले अहमदाबाद चुनाव में महामंत्री का चुनाव लडे तब वे महामंत्री बन गए। इन तीन वर्षों में वे वर्तमान सभापति के साथ में कंधे से कंधा मिलाकर चले। लोगों का का कहना है कि उन्होंने जो काम किया वह सभी जानते हैं  परन्तु अब दो-दो हाथ से ताली बज रही है। बताते हैं अब इनके साथ एक नहीं दो-दो पूर्व सभापति वरदहस्त का साथ हो गया हैं। देखना कि इस चुनाव में क्या निर्णय होता है।
इस चुनाव में जो राजनीतिक जोडतोड चल रही है वह चुनाव के दौरान क्या रंग लाएगी यह तो समय ही दिखाएगा कि कौन किस पर भारी पडेगा? अभी तो दोनों ने अपने-अपने मोहरे फिट किए हैं। इस चुनाव में राजनीति पैतरा किस हद तक जा सकता है यह चुनाव के दौरान देखने को मिलेगा और चुनाव निर्णय पर सबकी आंखे खोलकर रख देगा।
जब यह सोच भी नहीं पाएेंगे ऐसा निर्णय जो सबको चौंकाने वाला होगा। किसे कितनी कामयाब मिलेगी यह चुनाव के निर्णय पर ही राज खुलेगा। अभी मतदाताओं को इनकी कथनी-करनी पर ध्यान देना चाहिए।       

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