चुनाव मे सब जायज है....? आंकडों का खेल बन गया चुनाव

चुनाव मे सब जायज है....?
आंकडों का खेल बन गया चुनाव



जैसे ही महासभा के चुनाव की घोषणा 17 मार्च 2013 को मुम्बई की बैठक में हुई उसी दिन से महासभा की चुनावी हलचल पैदा हो गई और प्रत्याशी जोडतोड में लग गए, क्योंकि महासभा के लिए निर्विरोध की बात नहीं बनने से दो गुट  आमने-सामने हो गए। यहां तक कि अपने-अपने गुटों में शामिल करने के लिए इन्हें प्रत्याशियों को भी ढूंढना पडा कि किसे कहां से खडा किया जाए।
पार्टी बनने के बाद जो जोडतोड शुरू हुई उसमें जिसको वरदहस्त का सपोर्ट नहीं मिला वह दूसरे गुट में चले गए। जिन्होंने सालों तक एक-दूसरे का साथ दिया और भाईचारे का रिश्ता निभाया था। हमेशा साथ में रहकर काम करने वालों ने ऐनवक्त में दूसरी पार्टी में शामिल होकर सबको चकित कर दिया। याने विपक्ष में खडे हो गए। जिन्होंने महासभा के पिछले चुनाव में वरिष्ठजनों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर काम किया था और उस चुनाव में जीत हासिल की। वे भी अब विरोधी बनकर आ खडे हो गये हैं। ऐसे वे उम्मीदवार हैं जो पूर्व में या तो महासभा के चुनाव हार गए या देश की बडी संस्था के पद पर चुनाव में पराजित हुए हैं। महासभा में ऐसे नए चेहरे भी प्रत्याशी बनकर अपनी-अपनी उम्मीदवार जताने में इस चुनाव में ताकत दिखाने विपक्ष खेमे में आ खडे हो गए हैं। अब आप स्वयं इसका आंकलन कर सकते हैं कि ऐसे प्रत्याशी जो पूर्व में चुनाव हारे और समाज ने उन्हें उस पद के लायक नहीं समझा, ऐसे व्यक्ति अपनी मोहर लगवाने के लिए आतुर हैं। ऐसे विपक्ष उम्मीदवारों से आप क्या अपेक्षा रखते हैं? यह आपको तय करना है। आपको मत किसे देना है सरल, स्वच्छ छवि वाले व्यक्ति को या राजनीति वालों को। यह आपको ही तय करना है।
परन्तु अभी तो आंकडों का खेल चल रहा है। जिस दिन से चुनाव की पैनल बनी है। उस दिन से यह तिकडमी अपने आंकडों के खेल में लग गए हैं। जोडतोड करके आंकडे जोडे और घटाए जा रहे हैं। कहीं बढते हैं तो कहीं घटते हैं यही आंकडों का खेल इनका चल रहा है।
दोनों पैनल वाले अपने-अपने क्षेत्रों के आंकडे जोड रहे हैं कि कौन मतदाता इनका है और कौन दूसरी पैनल का। ऐसी जोडतोड का गुणा-भाग चल रहा है कि कौन कहा से जितेगा। दोनों पैनल के प्रत्याशी अपनी-अपनी जीत का आंकडा बना रहे हैं, परन्तु समय पर क्या स्थिति बनती है जहां इन गणितज्ञों का गणित फैल हो जाएगा इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं।
खासतौर पर नजर डालें तो कहीं धन लक्ष्मी होगी तो कहीं साधनों की, तो कहीं आवभगत इंतजामों की। देखना है कौन किसकी कितनी आवभगत करता है। आपकी यात्रा में पूरा सुख देने के लिए ये आतुर हैं इस काम में कोई पीछे नहीं है आप किस प्रकार की यात्रा चाहते हैं? हवाई यात्रा या एसी ट्रेन से? आप बताएं कि थ्री स्टार होटल चाहिए? आपके लिए एसी कारों का इंतजाम और साथ में पिकनिक पर जाने के लिए कन्वेंस व गाइड भी? आपके साथ होंगे और लजीज व्यंजन भी जो आपके इंतजाम के लिए है। यह सब इस चुनाव का सीन होगा। फिल्म देखिए फिर आप अपने आपको तोले कि आप कहां बैठे हैं? आपको जिस मुकाम पर पहुंचाया है, वह आपके लिए क्या मायने रखता है? सभी लुत्फ उठाइये। लेकिन समाज का ध्यान जरूर रखें। कहीं ऐसा न हो कि आपकी आवभगत इस चुनाव में आपकी मोहर उल्टे हाथ से लग जाए। वरना समाज का भविष्य क्या होगा? समाज का भविष्य आपके हाथों में है। ऐश करिये परन्तु आपकी सही सोच समाज के लिए रखें। आपको समाज का कर्ज उतारना है। ऐसा नहीं कि समाज और कर्ज में डूब जाए। इस बहती गंगा में हाथ अवश्य धोइये लेकिन गंगा को मेली मत होने दीजिए।
अभी तो रोज आंकड़े बदल रहे हैं सभी अपनी जीत के आंकडे बना रहे हैं, हारने की कोई उम्मीद नहीं रखते हैं, क्योंकि जब चुनाव में खडे हुए हैं तो हारने के लिए थोडे खडे हुए हैं? कौन व्यक्ति चाहेगा कि मैं चुनाव हार जाऊं। सभी अपनी-अपनी जीत के कयास लगा रहे हैं।
आपका काम स्वच्छ छवि, निपुण, सरल स्वभाव, बिना पद चाहने वाले, सेवा कार्य में निपुण प्रत्याशी का ही आपको चयन करना है। हारने वाले घोटालेबाज, लालच देने वाला, राजनीति करने वालों से सचेत रहकर आपका वोट होना चाहिए। जिससे समाज की स्वच्छ छवि उभर कर सामने आ सके और देश में माहेश्वरी समाज का नाम रोशन हो। माहेश्वरी समाज एक बुध्दिजीवी समाज है। हम दूसरों से अपने समाज को ऊंचा मानते हैं क्योंकि दूसरे समाज वाले हमारे समाज का अनुसरण करते हैं। परन्तु हम यह बात अपने समाज में पालन नहीं करते बस हम समाज में अपनी ऊंची टांग रखना पसंद करते हैं, क्योंकि आप अपने आपको स्वाभिमानी मानते हैं जब आप स्वाभिमानी है तो हमें भी तो इन बातों का पालन करना चाहिए।    

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