चुनाव प्रक्रिया पर एक नजर...

चुनाव प्रक्रिया पर एक नजर...


संगठन के कार्यकर्ता एक साथ मिलकर साथ-साथ कम करने से क्या लाभ हो सकते हैं। टीम शब्द का विस्तार करते हुए किसी ने बहुत अच्छा कहा है- ``Together Each Achieves More'' साथ में रहकर काम करने से हमारी व्यक्तिगत क्षमता से भी कई गुणा अधिक और अच्छा काम  हम कर सकते हैं।
लोकतंत्र शासन की सर्वोत्तम प्रणाली है। ग्राम पंचायत से लेकर संसद तक सारा कामकाज जनमत के आधार पर चलता है, परन्तु लोकतांत्रिक शासन प्रणाली सर्वोत्तम होते हुए भी दोषमुक्त नहीं है। चुनावों को लोकतंत्र का अविभाज्य अंग मान लिया गया है। चुनावों में निर्णय संख्या बल के आधार पर होते हैं। उत्तम प्रबंधन तभी संभव है जब चुनकर आने वाले व्यक्तियों में वे सभी गुण हो जो इकाई के सफल प्रबंधन के लिए आवश्यक है।
लोकतंत्र में एक प्रमुख दोष है इसके साथ जुडी हुई चुनावी प्रक्रिया। यदि चुनावी प्रक्रिया को हम टाल सके तो लोकतंत्र शासन की दोषरहित सर्वोत्तम प्रणाली बन सकती है। चुनावी प्रक्रिया का चयन प्रक्रिया ही हो सकती है। इस प्रक्रिया  में इकाई से जुडे भाई-बहनों द्वारा एक साथ बैठकर सभी बातों को मद्देनजर रखते हुए, विचार विनीमय करके स्वीकार्य व्यक्तियों का चयन किया जाता है तथा संविधान नियमों के अनुसार निर्धारित अवधि के लिए उनको पद्भार दिया जाता है। इस प्रकार की चयन प्रक्रिया से चुनावी प्रक्रिया को टालना संभव हो सकता है। चुनाव को टालने से किसी भी इकाई के प्रबंधन में जो लाभ देखे जा सकते हैं।
चुनाव में खडे सभी उम्मीदवारों मतदाताओं को रिझाने का प्रयास करते हैं। मतदाता यानी समाज दो या अधिक खेमें में बंट जाते हैं। इसका असर हमारे संगठन की मजबूती पर पडता है।
चुनाव में खडे उम्मीदवार का निजी घोषणा-पत्र होता है। चुनाव के बाद उम्मीदवारों में आपसी सामंजस्य की कमी देखी जाती है जो इकाई के अच्छे प्रबंधन में बाधाएं उत्पन्न करती है।
एक अंग्रेजी उक्ति से हम सब भलिभांति परिचित है जिसमें कहा गया है कि ``Everything is fair in love & war''  बडे प्रमाण में धन खर्च किया जाता है। साधारण वर्ग के उम्मीदवार को धनी उम्मीदवार का सामना करना कठिन होता है। प्रतिस्पर्धियों की छवि मतदाताओं के बीच मलिन करने का प्रयास किया जाता है। सामाजिक संगठन के लिए ये दोनों बातें कदापि पोषक नहीं हो सकती। चुनाव की प्रक्रिया में कई बार तांत्रिक कारण बताकर सम्पन्न चुनावों को न्यायालयों में दावा किया जाता है। न्यायिक प्रक्रिया एवं खर्चीली भी है। ऐसी स्थिति में सामाजिक इकाइयों की गतिविधियों में शिथिलता आ जाती है।
नए उम्मीदवार का जोश तथा अनुभवी कार्यकर्ताओं का होश एक साथ मिल जाए तो इकाई का कार्य अधिक गतिमान और संतुलित बन सकता है।
आपसी बातचीत से कार्यकर्ताओं का चयन करते समय उनका अनुभव, आचरण, व्यवहार, विशेषताओं, सक्रियता समय की उपलब्धता तथा सभी वर्ग एवं स्वभाव के लोगों को साथ में लेकर चलने की क्षमता को जांचना संभव होता है। चुनावी प्रक्रिया में यह कम ही संभव होता है।
जिन कार्यकर्ताओं का चयन यानी सहमति के आधार पर होता है। साधारणतः उनकी मानसिकता बैठकों में सहमति से निर्णय लेने की बनी रहती है। सहमति से लिए गए निर्णयों को कार्यान्वित करने में संगठन को आसानी बनी रहती है।
व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है। इसी के कारण वह सामाजिक संगठनों से जुडता है। हमको नहीं भूलना चाहिए कि संगठन से जुडे हर व्यक्ति में सेवाभाव है। वर्तमान युग की मांग है कि हर काम में लाया जाए। नए तंत्र को अपनाया जाए। कार्य करने की गति बढाई जाए। सामाजिक इकाईयों द्वारा चुनावी प्रक्रिया को चयन प्रक्रिया से कर देना एक समयानुकूल बात होगी।
-विष्णुदास दरक, मुंबई

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