संगठन में राजनीति न आने देना

संगठन में राजनीति न आने देना
राजनीति की ऐसी बातें वही कर सकता है जिसने राजनीति का पाठ पढा है या सिखा है और छोटे से कैरियर से शुरू होकर पद हथियाकर आम समाजजनों के सामने अपनी बातें स्टेज पर खडे होकर सभा में बैठे लोगों को किस तरह तोड-मरोडकर पेश करता है जहां इनका यह राजनीति खेल ही होता है, जहां अपने चहेतों से तालियां पिटवाते हैं और समाज में अपनी भूमिका निभाकर अपना मतलब साध लेते हैं और अपनी आवभगत में अपने चहेतों के जरिए करवाने में पीछे नहीं रहते।
यहां तक की वे अपने कार्यों का गुणगान भी अपने इन व्यक्तियों से करवाते हैं और जो सच्चा समाजसेवी जो इनके आचरण, अंदरूनी बातों से भलीभांति परिचित रहता है उसे यह अपने संगठन से किनारे कर देते हैं या उससे बात करना पसंद नहीं करते और न ही उसके सामने किसी बात का जिक्र करते हैं। यहां तक कि उसे सम्मान भी नहीं देते।
इसलिए सच्चा समाजसेवी का बीडा उठाने वाला तो किनारे हो जाता है और इनकी आवभगत करने वाला इनके आगे पीछे इर्द-गिर्द घूमता नजर आता है। इनके पिछले रिकार्ड पर गौर करें जहां इन्होंने कई वर्षों तक इस तरह का वातावरण उस संस्था में फैला रखा था जहां यह वर्षों तक उस संस्था के लोगों को ऐसा पाठ पढाते रहे और चुनाव हारने के पश्चात अब महासभा में अपना वर्चस्व बनाने में लगे हैं ताकि वह यह अहम चुनाव जीत ले। इनकी कथनी करनी में कितना अंतर है यह सब भलीभांति जानते हैं।
 ऐसे राजनीतिक वाले व्यक्ति जो समाज में अपनी पेठ गहरी इसलिए बना लेते हैं। इनकी इस राजनीति की वजह से संगठन की छवि तो खराब होती है उसका भी इन पर कोई असर नहीं होता, क्योंकि इन्होंने जो राजनीति का पाठ पढा है।

1 Comment(s) on “संगठन में राजनीति न आने देना“

Comment by : mahendra sahu advocate 22/10/2018 02:51 PM

sahi hai

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