'मथुरा' ब्रज मंडल की चौरासी कोस परिक्रमा



'मथुरा' ब्रज मंडल की चौरासी कोस परिक्रमा
ब्रज की सीमा
ब्रज की सीमा एक ओर 'बर' दूसरी ओर 'सोनहद' तथा तीसरी ओर सूरसेनका गांव 'बटेश्वर' मानी गयी है। 'बर' नामक स्थान वर्तमान अलीगढ जिले में है, जो ब्रज मण्डल के पूर्वोत्तर में स्थित है। सोनहद वर्तमान हरियाणा प्रदेश के गुडगांव जिले में स्थित है, जो ब्रज मण्डल के उत्तर पश्चिम कोने में स्थित है। इसी का प्राचीन नाम शोणितपुर था। सूरसेन का ग्राम 'बाह' तहसील का बटेश्वर नामक गांव है। इन्हीं स्थलियों के मध्यस्थ स्थली को ब्रजमण्डल कहा गया है।
ब्रजमण्डल परिक्रमा के नियम
मथुरा के विश्राम घाट पर ब्रजमण्डल परिक्रमा के लिए संकल्प किसी सरल, शास्त्रज्ञ,  निर्लोभी एवं  तीर्थगुरू या पुरोहित के द्वारा ग्रहण कर परिक्रमा आरम्भ करें। परिक्रमा के समय विधि एवं निषेधों का पालन करना चाहिए-
सत्य बोलना, ब्रह्मचर्यपूर्वक रहना, पृथ्वी पर शयन करना, दूसरों के अपराधों का क्षमा करना, तीर्थों में स्नान करना, आचमन करना, भगवत निवेदित प्रसाद का सेवन, तुलसीमालापर हरिनामर् कीत्तन या वैष्णवों के साथ हरिनाम र्सङ्कीत्तन करना चाहिए। परिक्रमा के समय मार्ग में स्थित ब्राह्मण, श्रीमूर्ति, तीर्थ और भगवद्लीला स्थलियों का विधिपूर्वक सम्मान एवं पूजा करते हुए परिक्रमा करें।
क्रोध नहीं करना, परिक्रमा पथ में वृक्ष, लता, गुल्म, गो आदि को नहीं छेडना, ब्राह्मण, वैष्णवादि तथा श्रीमूर्तियों का अनादर नहीं करना, साबुन, तेल और क्षौर कार्य का वर्जन करना, चींटी इत्यादि जीव-हिंसा से बचना, परनिन्दा, पर चर्चा और कलसे सदा बचना ये सब निषेध हैं।
परिक्रमा का समय
कुछ लोग आश्विन माह में विजया दशमी के पश्चात शरद् काल में परिक्रमा आरम्भ करते हैं, श्रीनीलाचल धामसे ब्रजमण्डल का दर्शन के लिए यही समय है। आश्विन शुक्ल एकादशी से कार्तिक व्रत, नियम सेवा के दिन से ब्रजमण्डल परिक्रमा आरम्भ करते हैं, तथा कार्तिक शुक्ल देवोत्थान एकादशी को व्रत का समापन करते हैं। अधिकांश वैष्णव शारदीया पूर्णिमा के दिन क्षौर आदि कार्य सम्पन्न कर उसी दिन से कार्तिक व्रत नियम सेवा या ऊर्जा व्रत का पालन एवं ब्रजमण्डल परिक्रमा का संकल्प ग्रहण करते हैं तथा देवोत्थान एकादशी के पश्चात् कार्तिक पूर्णिमा के दिन कार्तिक-व्रत एवं ब्रजमण्डल परिक्रमा का भी समापन करते हैं।
श्री निम्बार्क सम्प्रदाय के वैष्णवगण श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी के पश्चात् आने वाली दशमी से ब्रजमण्डल परिक्रमा का शुभारम्भ करते हैं। इनकी परिक्रमा में डेढ माह का समय लगता है। पुष्टीमार्गीय वैष्णवगण श्रीराधाष्टमी के पश्चात् दशमी या एकादशी से ब्रजमण्डल की परिक्रमा लगभग दो माह के समय में समाप्त करते हैं।
ब्रजमण्डल परिक्रमा के स्थानों का दर्शन
श्रीमथुरा, मधुवन, तालवन, शान्तनुकुण्ड, गंधेश्वर, बहुलावन, राल, मघेरा, जैत, शकटीकरा (छट्टीकरा) गरुडगोविन्द, बहुलावन, मरो, दतिहा, अडिग, माधुरीकुण्ड, कुसुम सरोवर, नारद कुण्ड, ग्वाला पुष्करिणि, युगल कुण्ड, किल्लोलकुण्ड, मानसी गंगा, गोवर्धन, इन्द्रध्वजवेदी, जमुनावति, परासौली, पैंठागांव, बछगांव (वत्स वन), आन्यौर गांव, गौरीकुण्ड, सङ्कर्षणकुण्ड, गोविन्दकुण्ड, नवलकुण्ड, अप्सराकुण्ड, शक्रकुण्ड, पूछरी, श्यामढाक,
 राघव पण्डित की गुफा, सुरभिकुण्ड, ऐरावतकुण्ड, हरजीकुण्ड, यतीपुरा, बिलछुकुण्ड, चकलेश्वर महादेव, सखी स्थली, नीमगांव, पाडर, कुञ्ज्ेरा, पालि, डेरावलि, मान, साहार, सूर्यकुण्ड, पेरकु, भादार, कोनाई, वसति, श्रीराधाकुण्ड, गोवर्धन, जावककुण्ड, गुलालकुण्ड, गांठोली, वेहेज, देवशीर्ष, मुनिशीर्ष, परमादना, बद्रीनारायण, गोहाना, खों, आलीपुर, आदिबद्री, पशोपा,  केदारनाथ, बिलंद, चरणपहाडी, भोजनथाली, काम्यवन, वजेरा, सुनहरा कदम्ब-खण्डी, ऊँचा गांव, सखीगिरी पर्वत, बरसाना गांव, गहवर वन, डभोरा, रासौली, प्रेमसरोवर, संकेत, रिठोरा, मेहरान, सत्वास, नन्देरा, भोजनथाली, नुनेरा, शृंगारवट, बिछोर वन, वनचरी, होडल, दहीगांव, लालपुर, कामेर, हरावली गांव, सांचुली, गैंडो, नन्दगांव, कदम्ब टेर, जावट, धनसिंगा, कोसी, पयगांव, छत्रवन, सामरी, नरी, सांखी, आरबाडी, रणवाडी, भादावली, खांपुर, ऊमराव, रहेया, कामाई, करेला, पेसाई, लुधौली, आंजनक, खदीरवन, बिजुआरी, श्रीनन्दगांव, कोकिलावन, छोटी बैठन, बडी बैठन, चरण पहाडी, रसौली, कोटवन, खामी, शेषशायी, रूपनगर, मझई, रामपुर, उजानी, खेलनवन, ओबे, श्रीरामघाट, काश्रट, अक्षय वट, गोपीघाट (तपोवन), चीरघाट, नन्दघाट, भयगांव, जैतपुर, हाजरा, बलीहारा, बाजना, जेओलाई, सकरोया, आटास, श्रीवृन्दावन, देवीआटास, परखम, चौमा, अजई, सिंहाना, रेहाना, पसौली, वरली, तरौली, एई, सेई, माई, वसाई, श्रीनन्दघाट, भद्रवन, भाण्डीरवान, माट, बेलवन, मानसरोवर, आरा, पानीगांव, लौहवन, राबेल, गढुई, आयरो, कृष्णपुर, बाँदी, दाऊजी, हातौरा, ब्रह्माण्ड घाट, चिन्ताहरण घाट, महावन, गोकुल, कैलो, बादाई ग्राम, नौरंगाबाद, श्रीमथुरा, अक्रूर घाट, भातरौल, (अटल-वन) क्यारीवन, बिहारवन, गोचारण वन, कालीय दमनवन, गोपालवन, निकुञ्ज्वन, (सेवाकुञ्ज्) निधुवन, झूलनवन, गहवरवन, पपडवन। इन बारह वनों से युक्त श्रीवृन्दावन।

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