समाज की प्रतिष्ठा...

समाज की प्रतिष्ठा... 
प्रगति और सम्मान में वृद्धि करते है सामाजिक भवन
ज ब भी हम कहीं सफर करने जाते हैं, तो दो मुख्य बातें जिनकी हमें सबसे ज्यादा चिंता होती है वह है- भोजन और रहने का स्थान। नई जगह पर सुरक्षित और व्यवस्थित स्थान ढूंढना बहुत से लोगों के लिए काफी मुश्किल होता है। ऐसे में यदि अपने ही समाज की धर्मशाला या भवन हमें मिल जाए, तो सफर करना काफी आसान हो जाता है। माहेश्वरी समाज ने अपने समाजजनों की इस समस्या को समझते हुए पिछले कई वर्षों में देश के कई शहरों में समाज की धर्मशाला और भवनों का निर्माण करवाया है, जिससे समाजजन बिना किसी चिंता और हिचकिचाहट के अपनी यात्रा करते हैं और अपने समाज के भवन में ही निश्चिंत होकर रुकते हैं। हर स्थान पर किसी भी नई जगह जाने पर हमें वहां रुकने में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। अनजाने शहर में होटल भी नया होता है, लोग भी नए होते हैं, किराया भी ज्यादा हो सकता है और सबसे बड़ी बात सुरक्षा की होती है। ऐसे में यदि हर शहर में माहेश्वरी समाज की धर्मशाला हो तो समाजजन निश्चिंत होकर वहां सफर कर सकते हैं, जितने दिन चाहे रुक सकते हैं। धर्मशाला निर्माण से समाज की प्रतिष्ठा भी बढ़ती है क्योंकि भवन निर्माण का कार्य भी सेवा के अंतर्गत ही आता है। जो लोग महंगे होटल में रुकने का व्यय नहीं उठा सकते, उन्हें कम कीमत में समाज के भवन मिल जाते हैं, जहां उन्हें हर तरह की सुविधाएं भी दी जाती है और वह आसानी से अपनी राह
ज जो परिचय सम्मेलनों का स्वरूप दिखाई देता आ है, वहीं एक या माने में स्वावर प्रथा खाई में इसे जाना जाता था। उस जमाने में जहां राम-सीता का स्वयंवर, कृष्ण-सुभद्रा, अर्जुन-द्रोपदी आदि के युवा प्रसंग इस प्रथा से जुड़े हैं परंतु अब यह प्रथा लुप्त सी हो गई है और वहीं समाज में जागरुकता आने से समाज संगठनों ने परिचय सम्मेलन का जो आयोजन प्रारंभ किया। इसमें सामूहिक विवाह का प्रचलन भी बढ़ा, जिससे समाज के कमजोर तबके को बड़ा सहारा मिला और समाज के माध्यम से उपहार स्वरूप विभिन्न वस्तुएं भेंट की जाती है। अब इस सम्मेलन में प्रतिस्पर्धा का रूप बन गया है कि किस समाज ने कितना सामान उपहार में प्रदान किया। यह प्रचलन दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है। आज समाज में सबसे बड़ी समस्या युवक- परिचय युवतियों के अनुपात की है जिसमें बालक और बालिका का अनुपात तेजी से घटा। परंतु हम इस स्थिति में अभी तक सचेत नहीं हुए यह समाज के लिए गंभीर विषय की बात है। एक ओर जहां परिचय सम्मेलनों में 200 युवकों की यात्रा पूरी कर सकते हैं।
जब किसी शहर में समाज के भवन का निर्माण किया जाता है तो वहां के लोग उस समाज के बारे में जान पाते हैं और उसके सेवाभाव के कारण उनके मन में उस समाज के प्रति सम्मान और बढ़ जाता है। सेवा के साथ ही यह समाज की आर्थिक प्रगति में भी सहायक होता है। माहेश्वरी समाज के भवन में आने वाले पैसों का उपयोग समाज के अन्य सेवाकार्यों व निर्माण के लिए भी किया जा सकता है। भवन निर्माण प्रविष्ठयाँ आती है उनमे 10-20 युवतियों का पंजीयन इस बात की ओर इशारा करता है कि परिचय सम्मेलन योग्य युवक के लिए योग्य युवती का चयन का माध्यम नहीं बन सकता है, क्योंकि परिचय सम्मेलन के आयोजनों में युवतियां स्वयं सार्वजनिक रूप परिचय देने में संकोच करती है। आजकल परिचय सम्मलेन के आयोजनों में लाखों रुपए का खर्च है जो समाज का होता है। उसके बावजूद यदि सम्मेलन में दो-चार रिश्ते बन भी गए तो समाज के धन का अपव्यय ही है और आयोजकों की दिन- रात की मेहनत के उपरांत ऐसा प्रतिफल मिले तो मानो खोदा पहाड़ निकली चुहीयां...। ऐसे में इसे प्रदर्शन का माध्यम नहीं बनाया जाए। इस कार्य के लिए समाजबंधु योग्य युवक-युवतियों का विवरण संकलित कर पुस्तिका का रूप देकर समाजजनों तक पहुंचाएं जिन्होंने विवाह योग्य पुत्र-पुत्रियों का विवरण आप तक पहुंचाया है, ताकि वे उस निस्कर्ष सम्मेलन तक पहुंच सके। यदि समय रहते हम इस दिशा में सचेत नहीं हुए तो आने वाला समय, इस दुर्गति से निजात नहीं पा संकेगा। तब ऐसे परिचय सम्मेलन का क्या मतलब रह जाएगा? समाज में सार्थकता कितनी है...?
के द्वारा समाज के अधिक से अधिक लोगों से जुड़ भी सकते हैं। इस तरह के पुनीत कार्यों को और भी बढ़ाना चाहिए और प्रयास करना चाहिए कि देश के हर शहर में माहेश्वरी समाज की एक धर्मशाला हो, भवन हो। साथ ही इसे सहेजने की जिम्मेदारी समाज के वरिष्ठजन के साथ ही युवा पीढ़ी को उठानी होगी ताकि समाज की प्रॉपर्टी की देखभाल अच्छे से हो सकें। समाज की उन्नति के लिए देश में समाज के जितने भवन होंगे, उतना ही अच्छा होगा।
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आज है, वहीं एक या माने में स्वावर प्रथा खाई में इसे जाना जाता था। उस जमाने में जहां राम-सीता का स्वयंवर, कृष्ण-सुभद्रा, अर्जुन-द्रोपदी आदि के युवा प्रसंग इस प्रथा से जुड़े हैं परंतु अब यह प्रथा लुप्त सी हो गई है और वहीं समाज में जागरुकता आने से समाज संगठनों ने परिचय सम्मेलन का जो आयोजन प्रारंभ किया। इसमें सामूहिक विवाह का प्रचलन भी बढ़ा, जिससे समाज के कमजोर तबके को बड़ा सहारा मिला और समाज के माध्यम से उपहार स्वरूप विभिन्न वस्तुएं भेंट की जाती है। अब इस सम्मेलन में प्रतिस्पर्धा का रूप बन गया है कि किस समाज ने कितना सामान उपहार में प्रदान किया। यह प्रचलन दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है। आज समाज में सबसे बड़ी समस्या युवक- परिचय युवतियों के अनुपात की है जिसमें बालक और बालिका का अनुपात तेजी से घटा। परंतु हम इस स्थिति में अभी तक सचेत नहीं हुए यह समाज के लिए गंभीर विषय की बात है। एक ओर जहां परिचय सम्मेलनों में 200 युवकों की प्रविष्ठयाँ आती है उनमे 10-20 युवतियों का पंजीयन इस बात की ओर इशारा करता है कि परिचय सम्मेलन योग्य युवक के लिए योग्य युवती का चयन का माध्यम नहीं बन सकता है, क्योंकि परिचय सम्मेलन के आयोजनों में युवतियां स्वयं सार्वजनिक रूप परिचय देने में संकोच करती है। आजकल परिचय सम्मलेन के आयोजनों में लाखों रुपए का खर्च है जो समाज का होता है। उसके बावजूद यदि सम्मेलन में दो-चार रिश्ते बन भी गए तो समाज के धन का अपव्यय ही है और आयोजकों की दिन- रात की मेहनत के उपरांत ऐसा प्रतिफल मिले तो मानो खोदा पहाड़ निकली चुहीयां...। ऐसे में इसे प्रदर्शन का माध्यम नहीं बनाया जाए। इस कार्य के लिए समाजबंधु योग्य युवक-युवतियों का विवरण संकलित कर पुस्तिका का रूप देकर समाजजनों तक पहुंचाएं जिन्होंने विवाह योग्य पुत्र-पुत्रियों का विवरण आप तक पहुंचाया है, ताकि वे उस निस्कर्ष सम्मेलन तक पहुंच सके। यदि समय रहते हम इस दिशा में सचेत नहीं हुए तो आने वाला समय, इस दुर्गति से निजात नहीं पा संकेगा। तब ऐसे परिचय सम्मेलन का क्या मतलब रह जाएगा?
 

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