संपादकीय

अपनी बात...

मतभेद के बीच मनभेद न आने दें...।

जंहा मतभेद हो पर मनभेद नहीं है। वहां पति-पत्नी को मुंह से बोलना ही नहीं पडता एक के मन में बात आती है, दूसरे के हृदय में स्वतः ही पंहुच जाती है। इशारों-इशारों में ही सारी जिन्दगी बीत जाती है।

हम देखते हैं वैचारिक भिन्नता के कारण पति-पत्नी छत्तीस की मुद्रा में होते हैं। वाक युध्द चलता है, छोटी-छोटी बात पर बडा मतभेद हो जाता है। न सिर्फ पति-पत्नी बल्कि कोई भी संबंध हों मन में एक बार दरार आ गई तो मानों जैसे पहाड टूट गया हो। परंतु इस बात नौबत क्यों आने दें अतः जीवन में मतभेद तो ठीक है परंतु मनभेद को जिन्दगी में नहीं आना चाहिए।

जीवन की सफलता आपके व्यवहार पर निर्भर है। व्यवहारिक योग्यता अनुभव से ही प्राप्त होती है। बुध्दि से काम लेना, व्यवहार में कुशलता, अच्छा व्यवहार सबसे बडी बात है। जीवन में स्वयं की गलतियों को ढूंढे तथा अपने में सुधार लाने की आवश्यकता है। मनुष्य कुछ खोकर ही कुछ पाता है इसका सीधा मतलब है कि मनुष्य एक बार धोखा खाकर या गलती करके आगे के लिए सावधान हो जाता है। और अपने को सुधार लेता है। अपनी गलतियों का सबसे सरल यह उपाय है। यदि यही बात समझ में आ जाती तो आपस में, रिश्तेदारी में, मित्रों से मतभेद, तर्क-वितर्क हो सकता है पर मनभेद की तो संभावना ही नहीं होगी। हमें कब किसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए इसका निर्णय अपने अनुभव के आधार पर अपनी बुध्दि व विवेक से करना होता है। सिर्फ बुध्दिमान होने से भी काम नहीं चलता हम व्यवहारिक रूप से तभी सफल हो सकते हैं। जब बुध्दि सजग, संयत एवं अनुभव संपन्न हो।

मन की शांति इस बात से प्राप्त होती है, वो कोई वैभव या संपन्नता से नहीं जिसका हृदय सदभावना से विशाल होता है। जो बात स्वयं अपने को कष्टप्रद प्रतीत उसे दूसरों के साथ भी न करें। क्षमा-दया से युक्त मन अपने आप सेवा त्याग, प्रेम, साहनुभूति एवं अनुराग से परिपूर्ण होता है वह मनभेद आने नहीं देता।

जो मनुष्य मात्र से प्रेम करता है उससे सब प्रेम ही करेंगे यही तो हमारा लो नियम है आपके मन में किसी के प्रति कोई अनिष्ठ की भावना नहीं है तो आपको न दुष्टों से न दुश्मनों से भय होगा। इसका मतलब है कोई असाधूता पूर्ण व्यवहार करता भी है तो उसका निराकरण यथा संभव साधूता से ही करना चाहिए। आप चाहे कितने सभी धनी-मानी क्यों न हो पर दूसरों को तुच्छ न मानिये यही तो मनुष्यता है। दिन खोल अच्छी बुरी सभी बात करिये पर साथ ही बात-बात में अपना गर्वयुक्त व्यवहार दिखाने से बचिये।

मनभेद से बचकर, मत-भेद पर स्वस्थ्य तर्क विर्तक करिये, दूसरों की अच्छी बातों को समझें, जो ज्ञान आपके पास है, दूसरों के बीच प्रस्तुत करने का श्रेष्ठ तरीका है।


  
प्रबंध सम्पादक- श्रीमती मनोरमा मंत्री

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