व्याख्या : राष्ट्र धर्म की

पहले यह समझना होगा कि 'राष्ट्र' क्या है ? इससे भी पहले यह समझना होगा कि 'मैं' क्या हूँ ? "प्रकृति" , जिसका निर्माण निश्चित तौर से एक ऐसी शक्ति ने किया है जिसे हम सरल भाषा में भगवान / अल्लाह / ईशा ......या इसी से मिलते जुलते नाम से जानते / समझते हैं . इस प्रकृति में इस परमात्मा ने न जाने कितने"रंग" भरे हैं , न जाने क्या क्या "जीवन" दिया है , इस जीवन के लिए "पदार्थों" की भी रचना की है , तरल भी बनाया तो वायु का निर्माण भी किया ..... यह तो हुई "परमात्मा" की संक्षिप्त लीला की झलक . जीवन देने से पहले जीवनदायी वातावरण , पालक वस्तु , जैविकता की वृद्धि का माकूल स्थान , उसकी तहजीब आदि आदि का निर्माण हुआ . तब जाकर "जीव" का पादुर्भाव हुआ - इस परम शक्ति द्वारा ..... अब आते हैं यह समझने के लिए कि "राष्ट्र" क्या है ? जिस धरा पर वह वनस्पति , वह जल - वायु , वह माता - पिता मिले , जिनके सहारे हमारा आगमन निश्चित हुआ - उस धरा को "राष्ट्र" कहा जा सकता है . वैसे देखा जाय तो इस "राष्ट्र" शब्द के अंतर्गत कायदे से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड आ जाता है , कैसे ? सूर्य , चन्द्र , समीर , जल , अग्नि , गुरुत्वाकृष्ण और भी न जाने क्या क्या - हमें इसी ब्रह्माण्ड ही से प्राप्त होते हैं . तो क्या इस ब्रह्माण्ड को सुव्यवस्थित रखने की हमारी जिम्मेदारी नहीं बनती है ? मानवीय व्यवस्था ने अपनी सुविधा का ध्यान रख कर इस "राष्ट्र" को अनेक "राष्ट्रों" में वितरित कर दिया , ठीक है , हम इस विस्तार में नहीं जायेंगे कि ऐसी व्यवस्थाओं का वितरण क्यों हुआ ! ध्यान देने की बात है कि परमात्मा ने मानव को उन्ही व्यवस्था - वितरण की अनुमति दी जो वह संभाल सके . "पंचमहाभूत" की व्यवस्था में मानव का कोई हाथ नहीं है और मानव यानि हमें इसमें छेड़खानी करनी भी नहीं चाहिए - जब भी हमने ऐसी पंचायती की है , विनाशकारी घटनाओं ने हमें चेताया भी है , खैर ! अब एक सरल सी बात : अग्नि का धर्म : ज्वाला का प्रज्वलन , वायु का धर्म : प्राण - संचार ......राजा का धर्म : राज्य की प्रजा की रक्षा , प्रजा का धर्म : राजा के बनाए अनुशासन का पालन ...... वृक्ष का धर्म : फल -छाया ,पौधे का धर्म : फूल - सुगंध ..... शायद आप मेरी बात को सरलता से समझ रहे हैं ...... "राष्ट्रधर्म" भी इसी कर्तव्य में ही आता है . मानवीय तैयारी ऐसी होनी चाहिए कि , जैसे हवा जिस संपर्क से आयेगी उसी की संगत के असर का हमें भी अहसास होगा , दूषित वातावरण से (जो जिससे दूषित होता है ) परमात्मा की सुन्दर रचना को बचा कर रक्खें . यही तो "राष्ट्रधर्म" है !!! बस , रक्षा - सुरक्षा के भाव को , जो अब दूषित हो गया है , सकारात्मक दृष्टिकोण से सहेज कर रखना है !!!!


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