हिन्दू कभी भी कमजोर नहीं पड़ सकता

हिन्दू कभी भी कमजोर नहीं पड़ सकता एक बात साफ़ साफ़ समझ लेनी चाहिए कि हिन्दू कभी भी कमजोर नहीं पड़ सकता . हिन्दू के साथ तो एक ही समस्या है कि वह अति संवेदनशील बन गया , उसके लहू की एक एक बूँद "डर" के सागर में हिलोरे ले रही है.हजारों वर्षों की गुलामी ने उसे तोड़ सा दिया है.लेकिन ,लेकिन फिर भी जब कोई राष्ट्रीय पर्व आता है , पूरा हिन्दू समूह उस पर्व में हर्षोल्लास से शामिल हो जाता है , भूल जाता है -अपने ऊपर होते जुल्मों को ! आज आतंक के साए में "अमरनाथ यात्रा"चल रही है --कहीं लगता है उसके मन में डर का भाव ? हर वर्ष श्रद्धालुओं की संख्या में बढ़ोतरी ही हो रही है. अबकी बार तो यात्रा ४५ दिनों की ही है (प्रति वर्ष ६० दिनों की यात्रा होती है ) लेकिन फिर भी अबकी बार की यात्री - संख्या अधिकतम होने जा रही है.हमारी इस कौम का इसी तरह का उत्साह कुम्भ में या किसी भी अन्य मेलें में परखा जा सकता है ! अब पहला प्रश्न यह है कि हमारी इस परम वैभवशाली जाति का ध्यान राष्ट्रीयता की तरफ कैसे खींचा जाय ? चूंकि ,जैसा कि मैंने पहली ही पंक्ति में लिख दिया है , कमजोर न होते हुए भी इसके मन में व्याप्त भय / आलस्य / ढीलापन / अन्मयश्कता को दूर करने के लिए हमें सदगुरु की आवश्यकता है. अब दूसरा प्रश्न खड़ा यह होता है कि भारत भूमि आध्यात्मिक गुरुओं से ठसाठस भरी होने के बावजूद हमारे अन्दर जोश का उबाल क्यों नहीं आ रहा है ? मैं विनम्रतापूर्वक , क्षमा सहित हमारे संत - महात्माओं से, प्रसिद्ध कथाकारों से , उपदेशक -विद्वानों से पुरजोर प्रार्थना करना चाहता हूँ बल्कि कर रहा हूँ कि कृपया अपना सम्पूर्ण व्यक्तित्व इस पुनीत सनातन सुधार में झोंक दें .रामायण - भागवत - महाभारत - गीता आदि सदग्रंथ तो हमारा मेरुदंड है लेकिन इस रीढ़ की मुख्य बीमारी तो यह पैठ गया "डर" है ! इन समस्त ग्रंथों का रसपान तो भयविहीन होकर ही सुनें तो ही अत्यंत लाभकारी होगा , ऐसा मेरा मानना है. अभी तो आप सभी एक स्वर से राष्ट्रीयता के गान में हम सबको गोता लगाने के आनंद की अनुभूति का पाठ पढ़ाएं........... मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि अगर हमारे संत - महात्मा- मुनि - तपस्वी - आश्रमाचार्य - मठाचार्य - उपदेशक - कथावाचक सभी ....सभी मिल कर हमारे अन्दर के सोये 'हनुमान' को , स्वाभिमान को जगाने में लग जाय तो शीघ्र ही हमारी यह पावन धरा " आध्यात्मिक विश्व गुरु " के रूप में स्थापित हो जायेगी. आज देश को कृष्ण नीति , विदुर नीति , चाणक्य नीति के सम्मिश्रण की आवश्यकता है , और केवल मात्र सदगुरु ही इस महत्ता का पाठ पढ़ा सकता है.............. जुगल किशोर सोमाणी , जयपुर


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