भूल बैठे , सब कुछ

हमें और भी पीछे जाना होगा , भूल चुके सब कुछ. अतीत को याद करके गौरवान्वित होते - होते वर्तमान की चेस्टाएं , सुकर्म , आचार - विचार , व्यवहार , खान - पान , वेश - भूषा , अनुशासन .....न जाने क्या -क्या खो चुके हैं हम ! जिस काल से हमने आलोचनाओं का स्वाद लेना शुरू किया , पतन की राहें नजदीक आती गयी.

और आज ? आज हम अधोगति की पराकाष्ठा से भी आगे निकलने की हौड़ की दोड़ में शामिल होकर अपने को गौरवशाली मान रहे हैं ! क्या हो गया है हमें ? संस्कृति की अप कीर्ति में हमारे सहयोग को वर्तमान से इतिहास बना काल भूला नहीं पायेगा !

पर थक - हार कर बैठने से कुछ नहीं होने वाला है. याद रखिये - एक नन्हे से बीज से पुनः वट वृक्ष खड़ा हो जाता है , खेत लहलहाने लग जाते हैं. हमारे पास बीजों की कमी नहीं है. आध्यात्मिक देश की असली संपत्ति तो उसकी आध्यात्मिक विभूतियाँ ही होती है. परन्तु जब दानव - राक्षस राज करें तो इन " बीजों " को भी दब कर रहना पड़ता ही है , लेकिन याद रखें - जब - जब इस धरा पर राम - परशुराम - कृष्ण - चाणक्य - चंद्रशेखर - भगत सिंह - गांधी - जय प्रकाश - अन्ना - रामदेव जैसे बीज जोर मारते हैं तो धरा को भी फाड़ कर अपने अस्तित्व का परिचय दे ही देते हैं. हर युग में हिरणाक्ष - हिरण कश्यपू - रावण - कंस पैदा हुए और " अति" करने के उपरांत "इति" को प्राप्त हुए , इतिहास गवाह है !

अब हमें क्या करना होगा ? हमारा क्या कृत्तव्य है ? क्या धर्म है हमारा ? यह सब जानने के लिए हमें ऋषि - मुनियों की शरण में जाना ही पड़ेगा . कोई चारा नहीं है - इसके अलावा.

हमें सच्चे दिल से , सच्चे मन से , सच्चे हृदय से यानि " मनसा - वाचा - कर्मणा " के भाव से शुद्ध होकर पुनः " अ आ इ ई ---क ख ग घ ---१ २ ३ ४ " से जीवन शुरू करना होगा. इसमें कोई शक नहीं है कि हमारी नई पौध हमसे ज्यादा सक्षम होगी इस महान देश के सनातनी आध्यात्म को समझने में.लेकिन....लेकिन तैयारी तो हमें ही करनी होगी, वरना हो गयी नई पौध तैयार !!!

राजस्थानी कहावत है :"जद बोइ जै : निनाणी जै : काटी जै : फटकी जै : पिसी जै ::: जै इत्ती होवे पोटी : जणा बनै रोटी "

तो यह पोटी यानि क्षमता तो हमें ही उत्पन्न करनी होगी. क्यों आने वाली संतानों से गाली खाने की व्यवस्थाओं में ही मशगूल हो, अब तो जागो !! नहीं तो हो गए हमारे श्राद्ध - तर्पण, हमारे मरने के बाद !!! सोच लो किसके लिए जी रहे हो , क्यों जी रहे हो ?? अरे मर - मर के भी जीना कोई जीना है !!!???!!!

Posted by -
जुगल किशोर सोमाणी , जयपुर



1 Comment(s) on “भूल बैठे , सब कुछ“

Comment by : Hari Gupta 10/09/2016 11:22 AM

namaste sir hume aapki raay achha laga. par isashe hume kya fayada hoga. hume apni raay mere e-mail par jaror bheje

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